सुब्रत राय सहारा: एक साम्राज्य जो कभी भरोसे का दूसरा नाम था

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

कभी सहारा इंडिया नाम सुनते ही दिमाग में एक ही शब्द आता था — विश्वाससुब्रत राय उस दौर के ऐसे कॉरपोरेट चेहरे थे जो केवल बिज़नेस नहीं, बल्कि भावनाओं का साम्राज्य चलाते थे। उनका दफ्तर हो या कार्यक्रम, वहाँ राष्ट्रपति से लेकर रजनीकांत तक आते और अपने को सम्मानित महसूस करते।सहारा श्री” कहे जाने वाले सुब्रत राय ने अपने ब्रांड को एक इमोशनल मूवमेंट में बदल दिया था।

BCCI से Bollywood तक: सबका सहारा

  • भारतीय क्रिकेट टीम की सबसे लंबी स्पॉन्सरशि, जिसकी वजह से आज वो इतना ताकतवर हो पाई है — सहारा इंडिया की देन। 2000 के दशक में सहारा की मौजूदगी हर स्टेडियम, हर इवेंट में दिखाई देती थी। सहारा की एयरलाइन्स ने बजट ट्रैवल का सपना साकार किया।

और मीडिया? भाई, सहारा का जलवा ऐसा था कि कई बड़े पत्रकार और एंकर्स सहारा के मंचों को प्राइम टाइम समझते थे। एक समय था जब सहारा परिवार में रेलवे के बाद सबसे ज्यादा कर्मी थी।

जब सुब्रत राय बुलाते थे, नेता दौड़ते थे

सहारा का जलवा ऐसा था कि उसके कार्यक्रम में पहुंचना, नेताओं और अभिनेताओं के लिए ‘शो ऑफ पावर’ माना जाता था। सुब्रत राय के इशारे पर बड़े-बड़े फैसले पलट जाते थे — चाहे वो राजनीतिक डिनर हो या फिल्मी फंडिंग। “कभी जिनके दरवाज़े पर लाल बत्तियाँ रुकती थीं, आज उनके दफ्तर में सन्नाटा पसरा है।”

और फिर आया ‘बुरा वक्त’

सहारा का वित्तीय ढांचा जटिल था — निवेशकों की स्कीमों को लेकर कानूनी उलझनों ने साम्राज्य को हिला दिया। सुब्रत राय को जेल तक जाना पड़ा। एक वक्त जो मीडिया को चलाता था, वही मीडिया अब उनके खिलाफ़ स्टोरी चला रहा था। सच कहें तो, जिस भीड़ ने उन्हें ताज पहनाया था, वही भीड़ चुपचाप उतर गई जब ताज उतरने लगा।

एक विरासत जो मिट नहीं सकती

आज भले ही सहारा समूह टूट चुका है, कार्यालय वीरान हैं, और सुब्रत राय अब नहीं रहे — लेकिन उनकी विरासत, उनके बनाए संस्थान, और उस दौर की यादें अब भी ज़िंदा हैं। “सुब्रत राय शायद हार गए हों, पर उन्होंने एक ऐसा साम्राज्य खड़ा किया, जिसे इतिहास मिटा नहीं सकता।”

“आज की कॉरपोरेट दुनिया में सब Unicorn बनना चाहते हैं, पर सुब्रत राय वो दौर थे जब Brand बनने के लिए सिर्फ़ एक वादा काफी था – ‘आपका पैसा सुरक्षित है’।”

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सुब्रत रॉय की जब मौत हुई तब कोई भी उनका शुभचिंतक अंतिम यात्रा में नहीं था। यहाँ तक की उनके बेटे भी वहां मुखाग्नि देने के लिए नहीं थे।

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